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सतीश धवन: एपीजे अब्दुल कलम के गुरु

सतीश धवन जी भारत के जानेमाने एक भारतीय गणितज्ञ, एयरोस्पेस इंजीनियर और वैज्ञानिक (Indian mathematician and aerospace engineer and Scientist )थे, जिन्हें व्यापक रूप से भारत में प्रयोगात्मक तरल गतिकी अनुसंधान का जनक (Father of experimental fluid dynamics research) माना जाता है।

उनका जन्म श्रीनगर, जम्मू कश्मीर में हुआ था, उन्होंने भारत और अमेरिका दोनों देशों से शिक्षा ग्रहण की थी।

सतीश धवन जी  को वायुमंडलीय विक्षोभ  और सीमा परतों (Turbulence and Boundary layers) के क्षेत्र में एक प्रख्यात शोधकर्ता के रूप में भी जाना जाता था, और उन्होंने भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के अध्यक्ष के रूप में 1972-1984 तक भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के विकास कार्यों का नेतृत्व किया।

सतीश धवन जी की शिक्षा

सतीश धवन जी ने लाहौर, भारत (अब पाकिस्तान) के पंजाब विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री प्राप्त की थी, जहाँ उन्होंने एक भौतिकी और गणित में और दूसरा मैकेनिकल इंजीनियरिंग में स्नातक की दो डिग्रीयां पूरी कीं थी। उन्होंने पंजाब में रहते हुए अंग्रेजी साहित्य में कला में भी महारत हासिल की।

1947 में, उन्होंने मिनेसोटा विश्वविद्यालय (University of Minnesota, Minneapolis) में एयरोस्पेस इंजीनियरिंग (Aerospace Engineering) में विज्ञान का मास्टर (Master of Science) पूरा किया और कैलिफोर्निया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (California Institute of Technology) से वैमानिकी इंजीनियरिंग की डिग्री (aeronautical engineering degree) हासिल की।

उन्होंने कैलटेक में अपनी पढ़ाई जारी रखी और 1951 में, उन्होंने गणित और एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में दोहरी पीएचडी (Double PhD in mathematics and aerospace engineering) पूरी की।

भारतीय विज्ञान संस्थान मे कार्यरत

उन्होंने बेंगलुरु के भारतीय विज्ञान संस्थान (IISc) में एक वरिष्ठ वैज्ञानिक अधिकारी के रूप में शामिल हो गए, और वे वैमानिकी इंजीनियरिंग विभाग के प्रमुख बन गए। उनके नेतृत्व के अंतर्गत, जल्द ही वैमानिकी इंजीनियरिंग विभाग भारत में प्रायोगिक तरल गतिकी अनुसंधान का केंद्र बन गया। 1962 तक, वे IISc में सबसे कम उम्रवाले व्यक्ति थे जिन्हे निर्देशक के पद पे नियुक्त किया गया और संस्थान के सबसे लंबे समय तक सेवा करने वाले निर्देशक बने हुए हैं।

इसरो के चेयरमैन का कार्यकाल

1971 में इसरो के चेयरमैन विक्रम साराभाई जी की आकस्मिक मृत्यु के बाद सतीश धवन जी ने 1972 में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के अध्यक्ष रूप में पदभार ग्रहण किया, साथ ही अंतरिक्ष आयोग के अध्यक्ष, अंतरिक्ष विभाग में भारत सरकार के सचिव, के साथ-साथ IISc में उनकी निदेशक पद पर बने रहे।

इतने कार्यभार होने के बावजूद, उन्होंने सीमा परत अनुसंधान के लिए अपना पर्याप्त प्रयास जारी रखा। उनका सबसे महत्वपूर्ण योगदान हरमन श्लिचिंग द्वारा सेमिनल बुक बाउंड्री लेयर थ्योरी में शामिल है। इसके अतिरिक्त, उन्होंने आईआईएससी में देश की पहली सुपरसोनिक विंड टनल की स्थापना की और अलग-अलग सीमा परतों के प्रवाह, त्रि-आयामी सीमा परतों और ट्रिसोनिक प्रवाह के पुनर्वितरण पर अनुसंधान का बीड़ा भी उठाया।

सतीश धवन जी ने ग्रामीण शिक्षा, सुदूर संवेदन और उपग्रह संचार में अग्रणी प्रयोग किए। उनके प्रयासों से INSAT- एक दूरसंचार उपग्रह, भारतीय रिमोट सेंसिंग उपग्रह (IRS – Indian Remote Sensing satellite) और ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (PSLV – Polar Satellite Launch Vehicle) जैसी परिचालन प्रणालियों का नेतृत्व हुआ जिसने भारत को अंतरिक्ष की दौड़ वाले देशों की सूचि में शामिल रखा।

सतीश धवन जी एक महान लीडर

सतीश धवन जी एक महान लीडर (Great Leader) भी थे। ऐसा ही एक किस्सा भारत के भूतपूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम जी ने बताया।

1979 में जब वह एक सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (Satellite Launch Vehicle) के निदेशक थे, और वे एक मिशन में उपग्रह को कक्षा में लॉन्च करने में विफल रहे और वह सैटेलाइट (Satellite) विफल होने के कारन बंगाल की खाड़ी में जा गिरा। एपीजे अब्दुल कलाम जी की टीम को पता था कि सिस्टम के ईंधन में एक रिसाव था, लेकिन उन्हें उम्मीद थी कि रिसाव नगण्य (negligible) था, और इस प्रकार उन्होंने सोचा कि सिस्टम में पर्याप्त ईंधन था। यह गलत अनुमान (miscalculation) विफलता का कारण बना।

सतीश धवन जी, जो उस समय इसरो के अध्यक्ष होने के नाते, एपीजे अब्दुल कलाम जी को बुलाया और प्रेस को अवगत कराया और कहा;

“हम असफल रहे! लेकिन मुझे अपनी टीम पर बहुत भरोसा है और मुझे विश्वास है कि अगली बार हम निश्चित रूप से सफल होंगे।”

इसने एपीजे अब्दुल कलाम जी को आश्चर्यचकित कर दिया, क्योंकि विफलता का दोष इसरो के अध्यक्ष द्वारा लिया गया था। अगला मिशन 1980 में सफलतापूर्वक तैयार हुआ और लॉन्च भी किया गया।

जब यह सफल हुआ, तो सतीश धवन जी ने एपीजे अब्दुल कलाम जी को अपनी अनुपस्थिति में प्रेस मीटींग में भाग लेने के लिए कहा।

एपीजे अब्दुल कलाम जी यह देखा गया कि जब टीम विफल हो गई, तो सतीश धवन जी में पूरा दोष ले लिया। लेकिन जब टीम सफल हुई, तो उन्होंने सफलता को अपनी टीम के लिए जिम्मेदार ठहराया, इस प्रकार सतीश धवन से एक आदर्श लीडर की तस्वीर चित्रित होती है।

उपलब्धियां

2002 में उनकी मृत्यु के पश्चात्, दक्षिण भारत में चेन्नई से लगभग 100 किलोमीटर उत्तर में स्थित आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा में भारतीय उपग्रह प्रक्षेपण केंद्र का नाम बदलकर सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र (Satish Dhawan Space Centre) रख दिया गया।

सतीश धवन जी को अपने कार्यों के लिए निमन्लिखिन पुरस्कारों से भी नवाज़ा गया:

1. पद्म विभूषण (भारत का दूसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान), 1981
2. पद्म भूषण (भारत का तीसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान), 1971
3. राष्ट्रीय एकता के लिए इंदिरा गांधी पुरस्कार, 1999
4. प्रतिष्ठित पूर्व छात्र पुरस्कार, भारतीय विज्ञान संस्थान
5. प्रतिष्ठित पूर्व छात्र पुरस्कार, कैलिफोर्निया प्रौद्योगिकी संस्थान, 1969

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